लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (28) छलनी कर देना ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = छलनी कर देना
अगला दिन, एक नयी सुबह, स्कूल की छुट्टियां आगे बढ़ जाने की ख़ुशी मानव के चहरे पर साफ झलक रही थी, वो बहुत अच्छा महसूस कर रहा था, एक हफ्ता और मिल गया था उसे अपने दादा और दादी के साथ रहने के लिए
अब वो जल्द से जल्द अपनी बाकी बची हुयी मुहावरों पर आधारित कहानियाँ लिख देना चाहता था ताकि, वो बाकी के दिन बहुत मौज मस्ती करके अपने दादा दादी के घर गुज़ारे
इसलिए आज सुबह ही वो अपनी किताब लेकर बैठ गया था, अपने दादा और बाकी सब के साथ और अगले मुहावरें को पढ़ कर सुना रहा था, जो की था " छलनी कर देना "
इस मुहावरें को सुन कर पास बैठे दीन दयाल जी बोले " बेटा मानव इस मुहावरें के दो अर्थ है, पहले मैं तुम्हे इसके दोनों अर्थ बताऊंगा उसके बाद तुम बताना की तुम्हे किस अर्थ पर कहानी सुनना है "
"ठीक है, दादा जी, आप मुझे बताइये की आखिर इस मुहावरें के दो अर्थ कैसे निकलते है, जो अर्थ मुझे समझमे अच्छे से नही आएगा उसे मैं कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करूंगा " मानव ने कहा
"चलो पहला अर्थ जानते है इस मुहावरें का, बेटा तुमने अक्सर देखा होगा फिल्मों में की किस तरह हीरो, विलेन को अक्सर गोलियों से कितना बुरा घायल कर देता है, कि वो मर जाता है, किसी को बुरी तरह बन्दूक या फिर किसी हथ्यार से मारना बहुत बुरी तरह से उसे छलनी कर देने कि तरह होता है, जैसा कि आर्मी ऑफिसर आतंकवादियों को अपनी बन्दूक कि गोली से छलनी कर देते है उनके सरद्द पार करने पर " दीन दयाल जी ने कहा
"और दादा जी दूसरा, दूसरा किस तरह से इस मुहावरें का अर्थ हो सकता है " मानव ने कहा
"बेटा पहला अर्थ किसी को शस्त्र, अस्त्र या फिर किसी हथियार से छलनी करना था दूसरा भी उससे ही मिलता झुलता है, बस वहाँ अस्त्र या शस्त्र ना होकर जुबान और उससे निकले बाण ही काफी होते है, किसी का ह्रदय छलनी करने के लिए, एक बार को बन्दूक की गोली से छलनी किया इंसान तो जीने की आस रख सकता है, लेकिन जुबान से निकले कटु बाण से व्यक्ति जिन्दा होते हुए भी मुर्दे समान होता है " दीन दयाल जी ने कहा
मानव थोड़ा असमंजस में था, कि आखिर कोई जुबान से छलनी कैसे हो सकता है, उसे इस मुहावरें का दूसरा अर्थ समझ नही आया, इसलिए उसने पूछ ही लिया " दादा जी, जुबान से कोई कैसे छलनी हो सकता है, "
दीन दयाल जी जानते थे, कि उनका पोता इस बारे में जरूर पूछेगा, इसलिए वो उससे बोले " चलो तुम्हे कहानी के माध्यम से समझाता हूँ, कि ये जुबान और इससे निकले कटु शब्दों से मनुष्य का ह्रदय किस तरह छलनी होता है
ये कहानी है, एक शहर में पले बड़े लड़के विक्रांत की, लड़का होने के नाते उससे उसके घर वालों को बहुत उम्मीदें थी, जिस तरह हर माता पिता और छोटे भाई बहनो को होती है
बदकिस्मती से वो दो बहनो का इकलौता भाई था, जिसके चलते जिस तरह उसे सबका लाड़ प्यार मिला था, उसी तरह उससे उम्मीदें भी बहुत थी उसके माता पिता को, जिन्होंने अपना तन पेट काट कर उसे और उसकी बहनो को पढ़ाया
कम तनख्वाह और ज्यादा खर्च होने के बावज़ूद उसे अच्छे से अच्छी शिक्षा दी, और फिर उसे इंजीनियरिंग कॉलेज में भी दाखिला दिलाया अपनी हैसियत न होने के बावज़ूद उसे कॉलेज में पढ़ाते रहे
विक्रांत भी बहुत मेहनती लड़का था, और साथ ही साथ वो भी अपने माता पिता, बहनो और रिश्तेदारों की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहता था, इसलिए ही तो वो मन लगा कर पढ़ाई करता था ताकि उन सब के सपने पूरे कर सके
लेकिन ये जिंदगी बाहर से देखने में जितनी आसान लगती है, उतनी होती नही है, और आज कल के दौर में तो बिलकुल भी नही
अपनी नन्ही आँखों में बढ़े ख्वाब लेकर विक्रांत हर समय उन्हें पूरा करने की जद्दोजहद में लगा रहता, यही सोचता की कब पढ़ाई मुकम्मल होगी और कब वो पैसे कमा पायेगा, और आखिर कार वो दिन आ ही गया उसकी जिंदगी में लेकिन उसकी पढ़ाई तो मुकम्मल हो गयी थी लेकिन नौकरी मिलना इतना आसान काम नही था
कॉलेज प्लेसमेंट वालों ने भी बस कुछ चंद बच्चों को ही चुना बाकी सब गधे घोड़े एक बराबर की लाइन में लगे हुए थे
कॉलेज से निकलने के बाद कुछ दिन घर बैठ कर ईमेल पर ईमेल भेजनें के बाद भी जब कोई रिस्पांस नही आया हाथ में डिग्री सर्टिफिकेट लिए इधर से उधर मारा मारा फिरता रहा, हर एक सपना उस बेरोज़गारी के चलते टूटता नज़र आ रहा था जो उसके घर वालों ने उसकी आँख से देखे थे
बेरोजगारी एक पढ़े लिखें आदमी के लिए एक कलंक समान है, जब उसके अपने ही उसे नाकारा समझने लगते है तब उनकी जुबानो से निकले शब्द जब ह्रदय पर आकर लगते है, तब वो शब्द, शब्द नही बल्कि एक खंजर की भांति उस मनुष्य का सीना छलनी कर देते है, जिसके माथे पर बेरोज़गारी का ठप्पा लगा होता है
ऐसा ही कुछ विक्रांत के साथ भी हो रहा था, जब मोहल्ले वाले,पड़ोस और रिश्तेदार भी उसे ताने दे रहे थे, वो समय उसके लिए एक बुरे समय जैसा था, उसने क्या सोचा था और क्या हो रहा था
वो अपने जो कल तक उसके पास खडे होकर उसकी बालाये लेते थे, आज इस तरह उसे बाते सुना रहे है मानो वो जान बूझकर बेरोजगार बैठा है, उन सब की बातों ने उसके सीने को छलनी कर दिया था, कभी कभी तो उसके खुद के घरवाले भी उसे कटुवचन सुनाने से बाज नही आते थे, वो मुश्किल समय जब उसे अपने ही घर वालों का साथ चाहिए था तब वो ही उसे बाते और ताने सुनकर उसका सीना छलनी कर रहे थे
लेकिन कहते है ना हर दौर चाहे अच्छा हो या बुरा गुज़र ही जाता है, और गुजरने के साथ साथ अपने और पराये में विबेध भी कराता चला जाता है, विक्रांत की जिंदगी में भी वो पल आये उसकी जिंदगी से काले बादल छट गए, क्यूंकि उसने कोशिश करना नही छोड़ी थी और जिसका परिणाम उसे मिलना ही था, लेकिन उस मुश्किल घड़ी में जो उसके अपनों ने ही उसका सीना छलनी किया था शायद वो कभी नही भर पायेगा, उन बातों और तानो ने उसका सीना बुरी तरह छलनी कर दिया था जिसे इतनी आसानी से नही भरा जा सकता था
बेटा इस कहानी से ये शिक्षा मिलती है, कि कभी भी किसी को अपनी बातों के बाड़ से छलनी नही करना चाहिए क्यूंकि वक़्त बदलते देर नही लगती है, कब क्या हो जाए ईश्वर के सिवा कोई नही जानता
दीन दयाल जी ने कहा
मानव बेहद ध्यान से अपने दादा को सुन रहा था, अब उसे बहुत अच्छे से समझ आ गया था
समाप्त
प्रतियोगिता हेतु
अदिति झा
17-Feb-2023 10:48 AM
Nice
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सीताराम साहू 'निर्मल'
16-Feb-2023 07:18 PM
Nice 👍🏼
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Rakesh rakesh
15-Feb-2023 01:45 AM
बहुत बढ़िया
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